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*अरविंद सवैया*

1) मनखे मन काँटिच हे बन ला, टँगिया हँसिया धरके हर साल। निमगा पुरवा नइ पावच गा, बनगे जिनगी बर ओहर काल। तरिया नदिया डबरा पटगे, पनिया बिन रोवत हे सब ताल। बढ़िया रुखवा ल लगा बन मा, जिनग...

*(सुन्दरी सवैया छन्द)*

1) सुनके रहिबे गुनके चलबे, तबतो बढ़िया जगमें रहि पाबे। चल जाँगर पेर बने कसके ,नइ तो जिनगी भर गा पछताबे। करले तँय दान दया बढ़िया, सुन ले भइया बड़ पुण्य कमाबे । जपले मनमा हरि नाम बने, त...

*शक्ति छन्द*  

1) बने साफ हो जी गली खोर हा। तभे गाँव आही ग अंजोर हा। रहे गाँव मा जी सदा रीत हा । बसे हे घरो घर मया प्रीत हा। 2) मया ले मया दे, रहे मीत हा। बहे धार चारो, डहर प्रीत हा। दया राख मनमा, कहे र...

*कज्जल छन्द*

पावन छत्तीसगढ़ मोर। मया दया ला रखे जोर। हवे किसानी के सोर। संग मितानी रहे तोर। देव विराजे इहाँ जान। साधु संत के हवे मान। भुइँया के हावे किसान। कहिथे जेला ग भगवान। बइला जेकर...

*कुकुभ छन्द*

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा, बड़ गुरतुर मोला लागे। जन्म जन्म के रिश्ता हावे, जेला मोरे मन भागे। मोर हवय जे दाई भाखा, मानव जेला भगवाने। मीठ मीठ अउ गुरतुर बोली, बोलव जी सीना ताने। नाचत ...

*मोद सवैया* (छन्द)

1) बालक छोट रहे हम खेलन कूदन जी धुर्रा अउ माटी। जावन होत बिहान धरे थइली भर जी भौंरा अउ बाँटी। नाचत कूदत खूब मजा लन जी पहिरे माला गर घांटी ।। देवन जी सँगला बढ़िया अउ जावन गा संगी ब...

त्रिभंगी छन्द

जय जय हो भुइँया, परथँव पँइया, रोजे तोरे, ध्यान धरँव। मोरे महतारी, तँहि सँगवारी, अपन राज के, मान रखँव।। बाढ़य गरिमा, गावँव महिमा, दाई जब मँय, गान करँव। मन ला मँय खोलँव, भाषा बोलँव, इँ...

*कज्जल छन्द*

1) वरुण देव हा जी रिसाय। पानी आसो नइ गिराय।। रोवत नदिया बहत जाय। हाल देख भुइँया सुनाय। रोवत हावे सब किसान। आसो होइस नहीँ धान। भुइँया जेकर हवै जान। सुक्खा मा छूटत परान। पानी ...

बरवै छन्द

*महँगाई * बाढ़े भावे कसके, हर दिन साल। बइरी महँगाई हा,  बनके काल।। झार गोंदली मारत, बइठे हाट। होवय चर्चा जेकर, रस्ता बाट।। लाल लाल होवत हे, सबके आँख। मिरचा बइरी देवत, कसके काँख।। ...

*(किरीट सवैया)*

1. गुरु  आवत जावत सोवत मैं गुरु के गुन रात अऊ दिन गावव। जेकर जी सुनके महिमा अबतो बड़ मैं हर तो इतरावव। पावव ताकत मैं गुरु के अबतो हर संकट मैं ह पुकारव। मार इहाँ गुरु के मन मंतर मै...

*(छन्द त्रिभंगी)*

1) हे जग महमाई, सबके दाई,   मन मे आके,  वास करौ। हे मंगल करनी, जग के जननी, विपदा आके, मोर हरौ। महिमा हे भारी,   शोभा न्यारी, सबझन तोरे, गान करै। करथे मन सेवा, चढ़ा कलेवा, सब भक्तन मन, ध्या...

सरसी छन्द फागुन

देख महीना आगय फागुन, घर मा हे अँधियार। दूखन भूखन रहिके आसो, मानत हवन तिहार।। तरिया नदिया सुक्खा हावे, सुक्खा खेती खार। बिन पानी के मचगेे हावय, भारी हाहाकार।। आसो के होरी मा प...

सरसी छन्द नारी

मान राख जग मा नारी के , झन कर अपमान। नर नारी ले जग हा बनथे, होवय जग कल्यान।। दुरगा काली लछमी दाई, बनके बाँटत ज्ञान। देवी रूप हरे जी नारी , जग बर गा वरदान।। फेर आज के ये समाज मा, सब ना...

रोला छन्द

सुक्खा खेती खार, झने कर आना कानी। रोवत आज किसान, देख ले बरखा रानी। सुनले आज पुकार, गिरादे अब तो पानी। नइहे जग मा जान, बिना पानी जिनगानी। -हेमलाल साहू

चौपई छन्द (पताल)

रहिथे गोल गोल जी, दिखथे लाल। बारी मा फरथे जी, करय कमाल।। जेकर हे पताल गा, सुनलव नाव। घर बारी मा पाबे, सबके गाँव।। बारो महिना रहिथे, जेकर माँग। डारके बना संगी, बढ़िया साग।। बने पी...

(चौपई छन्द) राखी

महिना हावय भादो मास। भाई बहनी बर हे खास।। भैया ला बहनी के आस। मन मा राखे हे बिस्वास।। आगय राखी हमर तिहार। बहनी मन होवत तैयार।। बहनी राखे मया दुलार। भैया के आशीष अपार।। बाँ...

(चौपई छन्द) बरखा

बरखा के आवत हे सोर। पानी गिरत गली अउ खोर।। सावन महिना के हे जोर। नाचत हावय बन मा मोर।। धरै मेचका सुघ्घर राग। झिंगरा गावत हावे फाग।। देख केकड़ा पीटत डोल। घोंघी खेलय घांदी गोल...

चौपई छन्द

जिनगी मा नइ हावय टेम। तँय सुनले गा बाबू हेम।। रखबे मन मा तैहर प्रेम। जग मा तभे कमाबे नेम।। महिना आय जेठ बैसाख। देख उड़त माटी अउ राख।। तात तात ले चलथे झाँझ। होत बिहनिया ले जी स...

*जय शिव शंकर* सरसी छन्द

जय शिव शंकर भोले बाबा, महिमा गावँव तोर। तन मन ला अर्पित कर देवँव, मानौ श्रद्धा मोर।। करहूँ संझा अऊ बिहनिया,  तोर नाव के जाप। तँय निरमल पावन मन वाले, बइठ हृदय में आप।। भवसागर के...

हेम के कुंडलिया

जिनगानी मा रुख हवै, संगी बड़ अनमोल। रखबे बने सहेज के, झन कर टाल मटोल।। झन कर टाल मटोल, राख बढ़िया से भाई। रोज लगा तँय पेड़, हाँसही धरती माई।। आवय सुघ्घर देख, हमर जी बरखा रानी। लगाबो...

हरिगीतिका छन्द

रखबे मया तँय संग मा,  करु छोड़ के तँय गोठ गा। तँय राखले बिस्वास ला, मन होय जी तब पोठ गा। अभिमान ला तँय छोड़ के, मन राख ले तँय प्रेम गा । करबे भला मन बाँध ले, जग आस हे हर टेम गा।। सुघ्घर ...

गीतिका छन्द

तँय नशा ला छोड़ संगी, बात ला तो मान ले। ए नशा हा नास के गढ़, आज तँय जी जान ले।। काल जेकर ए हवय साथी, रोग धरके आय जी। होय घर बरबाद सबके,  सुख कहाँ ले पाय जी।। गीत ला तँय गाव गुरतुर, गीतिक...

हाइकू

समे के फेम रोवत हवै हेम नइ हे टेम खड़ै हे काल फइले माया जाल बचे न खाल हेमलाल साहू ग्राम- गिधवा, पोस्ट नगधा, तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा छत्त्तीसगढ़, मो. 9977831273

हेम के कुण्डलिया

मन मा बसथे पाप हा, फइले माया जाल। सबला बइठे देखथे, चुपकन आ के काल।। चुपकन आके काल, समझ कोनो नइ पावय। पक्का हावय समय, काल भूल नई जावय।। जिनगी के दिन चार, हँसी से रहले जग मा। माया चक...

हेम के कुण्डलिया

माया के दुनिया हरै, बनबे झने अलाल।। मँय मँय ला छोड़ के, आदत सुघ्घर डाल। आदत सुघ्घर डाल, मेहनत के बन साथी। दान दया ला राख, जगत के बन परमार्थी।। कहै हेम कविराय, हवय माटी के काया। छो...

जूनी मेला (सार छन्द)

सँजे-धजे  हे बइला गाड़ी, जावत हावय मेला। गाँव गाँव के लोग लुगाई, जावत रेलम पेला।। रखै आस दरशन के मनमा, गावत जावय गाना। जियत मरत के मेला हावय, नइ हे फेर ठिकाना।। अरे तता कहिके हा...

सुन ले मोरे मितवा (सार छंद)

सुन साथी रे सुन संगी रे, सुन ले मोरे मितवा। आ जाबे रे आ जाबे रे, मोर जनम के हितवा।। जग हा सुन्ना मोला लागे, सुरता दिन भर आवै। तोर बिना जग बइरी होंगे, अबतो मन नइ भावै।। बोझ लगै जिनग...

हेम के कुण्डलिया

सजथे सुघ्घर गाँव मा, देखव हाट बाजार। आनी बानी साग हे, लेवव छाँट निमार।। लेवव छाँट निमार, रहय झन एको कड़हा। ताजा ताजा ताय, तराजू मा ले मड़हा।। कहत हेम कविराय, हाट गाँवे मा लगथे। घ...

हेम के कुण्डलियाँ

दारू ला अब बेचही, देखव जी सरकार। पइसा खातिर आज ये, करत हवै बेपार।। करत हवै बेपार, मारही अब मनखे ला । दारू भट्टी खोल,   लगाही मेला ठेला ।। पीके कतको रोज, मरँय झँगलू बुधवारू। हद ह...

नारी

नारी दव जग आन जी, झन कर अत्याचार। नर नारी से जग चलै, इहि मा जिनगी सार।। इहि मा जिनगी सार, मान नारी के राखव। नारी जग पहचान, जेन ला अबतो जानव।। कहत हेम कविराय, हवै महिमा हा भारी। दे...

होरी के संग जोही के सुरता

देख महीना फागुन आगे, मन नइ भावे मोर। चढ़ै नशा फागुन के हावे, रंग मया के तोर।। रोज रोज के सपना आथे, दिल मा उठै हिलोर। रहिथे मोरे मन उदास गा,  सुरता आथे तोर।। बइठे रद्दा जोहत हव मँय, ...

आगे फागुन (सरसी छंद)

आगे हावय फागुन महिना, रंग उड़त हे लाल। मया प्रीत के रंग रंगथे, सबो लगावत गाल।। ढोल नगाड़ा हवै बजावत, फागुन के हे राग। खेलत कूदत नाचत सुघ्घर, गावत हावे फाग।। चढ़ै नशा फागुन के हाव...

सुरता कोदूराम दलित जी के

पुरखा मन के सुरता करके, मन भर के कर याद। जेमन  हमर  धरोहर बर जी, डारिस पानी खाद।। खादी  कुरता  धोती  टोपी,  रहिस हवै पहिचान। जन जन के ओहर सँगवारी, बड़का प्रतिभावान।। जिला दुरुग...