भाई सुनले गोठ ला, बने लगा के चेत। बीड़ी गुटका संग मा, दारू जीवे लेत।। दारू जीवे लेत, काल के जानव संगी। करथे घर ला नाश, लाय पैसा के तंगी।। कहे हेम कविराय, नशा छोड़े म भलाई। सुखी रही प...
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।