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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हेम के कुण्डलिया

भाई सुनले गोठ ला, बने लगा के चेत। बीड़ी गुटका संग मा, दारू जीवे लेत।। दारू जीवे लेत, काल के जानव संगी। करथे घर ला नाश, लाय पैसा के तंगी।। कहे हेम कविराय, नशा छोड़े म भलाई। सुखी रही प...