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बरखा रानी (हेम के सार छंद)

करिया करिया बादर देखत, हाँसत हे जिनगानी। सबके मन मे आस जगत हे, आही बरखा रानी।1। रुमझुम रुमझुम पानी बरसे, खड़े किसान दुवारी। सावन भादो महिना आगय, रात लगे अँधियारी।।2। लुका छुपी के खेल ल खेलय, चाँद सुरुज बड़ भारी। छावय जग मा घुमड़ घुमड़ के, बदरी कारी कारी।3। धरके गावय राग मेचका, करय तमासा मछरी। झूमर झूमर डोरी नाचय, पिटय केकड़ा डफरी।4। झीगुर सोर मचावत हावय, खेलय घोघी घाँदी। चारो कोती स्वागत करथे, झूम झूम के काँदी।5। टपटप टपटप पानी गिरथे, चुहथे खपरा छाँही। नदिया नरवा सब भर जाही, सुघ्घर जिनगी आही।6। पहिरे धरती हरियर लुगरा, लाय नवा खुशियाली। चिरई चुरगुन खेती घूमय, देखय बड़ हरियाली।7। -हेमलाल साहू  ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग)

रख जग ले नाता (हेम के उल्लाला छंद)

दाई अउ बाबू हवे, जग मा भगवान कस। संतोषी बहनी हवे, यम हे भाई जान जस।। पूजा कर परिवार के, जिनगी जाही तोर तर। करम धरम करले इहाँ, दान दया ला मोर धर।। मया दया के गाँठ ला, बाँध बने कस छोर से। कतको बड़का भेद ले, टूटे झन बस जोर से।। जियत मरत नाता रहे, सुघ्घर सबके संग मा। कलजुग के दुनिया हवे, चढ़े मया के रंग मा।। स्वारथ के मनखे हवे, जाँगर मा सम्मान हे। बिन जाँगर पूछे नहीं, करत सदा अपमान हे।। मानवता मन मा कहाँ, सोचत हावय हेम हा। रख नाता जग ले सदा, मिलही सबसे प्रेम हा।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

झन काँटव रुख राई ला (हेम के सार छंद)

झन काँटव गा रुख राई ला, जेमा हे जिनगानी। हावय सबके डेरा संगी, करहूँ झन मनमानी।। सुघ्घर रुख राई मन हावे, देखव ठउर ठिकाना। सबो जीव जंगल रहिथे, तँय झन खोज बहाना।। अपने स्वारथ बर जी सबके, हवे उजारत डेरा। चिरई चुरगुन रोवत हावय, करबो कहाँ बसेरा।। दीया बूता गे जिनगी के, जले कहाँ ले बाती। सब रुख राई कटगे संगी, जरथे भुइँया छाती।। मिले नहीं निरमल पुरवाई, अटकत हावे साँसी। बून्द बून्द पानी बर तरसे, जिनगी होगय फाँसी।। सोचब समझव आवव संगी, लगाबोन रुख राई। बाग बगइचा खूब बनावँन, निरमल हो पुरवाई।। सुघ्घर धरती आँव सम्भरा, पहिरा हरियर लुगरा। मान प्रकृति के रखबो संगी, नई करन जी उँघरा।। जंगल झाड़ी रुख राई मा, सुघ्घर हमर निसानी। चिरई चुरगुन सबो जीव के, हावय दबे कहानी।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

किसान (हेम के सार छंद)

होत बिहनिया उठके भैया, धरती करत बखाने। सुरुज देव के पाँव परत हे, अंजोर नवा लाने।। देखत हावे करिया बादर, हाँसत हे जिनगानी। मनमे आस जगावत हावे, होही बने किसानी।।  सान कोटना सुघ्घर आँटी, बइला खूब खवाये। जिनगी ला मोर तार के तँय, घर मा लछ्मी लाये।। बार बार वो पाँव परत हे, कसके मया दुलारे। करबो चलना संगी खेती, आगे बारिस हा रे।। होत बिहनिया निकले भैया, खाँदे बोहे नागर। धरे तुतारी हाथे अपने, धरके जावय जाँगर।। फाँदे बइला नागर भैया, खेत बोय जी धाने। अरा तता के धुन हर गूँजे, देख जगत हा जाने।। दुख पीरा ला सहत रहे जी, दूनो देख मिताने। का कहिबो ए घाम छाँव ला, बइला जाँगर माने बिना करम फल मिले नहीं, करव गान भगवाने। जाँगर पेरत हवे रात दिन, करके सेवा ध्याने।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

जिनगी ला संवार (हेम के सरसी छंद)

बेटी ला पढ़ा लिखा के दौ, सब विद्या ज्ञान। किरण चावला कस संगी, बेटी भरय उड़ान।। लछमी होथे नोनी घर के, बाँध रखे परिवार। बाबू कस नोनी ला संगी, दे दौ जी अधिकार।। नोनी बाबू एक हवे जी, सबला जग दौ आँन। दुवा भेद ला छोडव संगी, सबला दौ सम्मान।। झाँझी के रानी बाई जस, दे दौ जी तलवार। दुर्गा काली चंडी जइसे, भरही ओ हुंकार।। बढ़िया ये समाज मा संगी, राखव नवा विचार। बेटी ला पढ़ा लिखा के दे, जिनगी ला संवार।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

रुख राई (हेम के सार छंद)

आवव मिलके रुख राई ला, जम्मों डहर लगाबों। निर्मल करबो पुरवा पानी, सुख के अलख जगाबों1। पानी बर झन तरसे धरती, अइसन दिन ला लाबो। किसम किसम के रुख राई मा, धरती ला सम्हराबों।2। पेट भरे बर फल मिलही गा, घर बर लकड़ी झाड़ी। प्यास जगत के बुझही संगी, सुख ले चलही गाड़ी।3। झूम  झूम  के  बरखा आही, होही  बने  किसानी। लाँघन कोनो नइ रइही गा, रुख सँग बदव मितानी।4। भरे रहे नदिया नरवा मा, अतल तला तल पानी। हरियर हरियर धरती सँभरे, हाँसय गा जिनगानी।5। सबो डहर रुख राई पाबौ, सुघ्घर लगे घनेरा। चिरई चुरगुन खेलय कूदय, लगा मया के डेरा।6। रुख  राई  के रक्षा  करबो, तब पाबौ हरियाली। हाँसत रइही सबके जिनगी, गाँव भरे खुशियाली।7। गाँव गाँव मा बढ़िया संगी, नव सुराज ला लाबो। रुख राई जइसे पूत नही,  सुघ्घर मान बढ़ाबों।8। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा (छ.ग.)

कलजुग (हेम के दोहे)

कलजुग माया जान के, फूँक फूँक रख पाँव। आही हमरो काल तौ, नइ मिलही जी ठाँव।। सबले बड़का काल हे, हवय समय के मान। कतको जीव छुपाय तँय, बाँचय नही परान। भेस धरे साधू हवै, चोला पहिर सफेद। करै दिखावा कोकड़ा, का जानव गा भेद।। कलजुग के परताप ये, रखथें मन मा बैर। भाई भाई दुश्मनी, नइये ककरो खैर।। कायर मन मा हे भरे, रखे जहर ला डार। सोच समझ के सँग रहौ, देवत हे फुफकार।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)