सुक्खा खेती खार, झने कर आना कानी। रोवत आज किसान, देख ले बरखा रानी। सुनले आज पुकार, गिरादे अब तो पानी। नइहे जग मा जान, बिना पानी जिनगानी। -हेमलाल साहू
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।