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अगस्त, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रोला छन्द

सुक्खा खेती खार, झने कर आना कानी। रोवत आज किसान, देख ले बरखा रानी। सुनले आज पुकार, गिरादे अब तो पानी। नइहे जग मा जान, बिना पानी जिनगानी। -हेमलाल साहू