हे नटवर नन्दलाल मोरे, आँव लाज रखबे। बड़गे चारो मुड़ा पाप हा, आ अब तँय हरबे।। बड़े बड़े सकुनी इहा हवे, चाल चलत अपने। फेकत हावे जाल भरम के, रखथे कपट मने ।। करथे अधरम हा राज इहा, दुर्योध...
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।