सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*इंटरनेट*(हेम के कुण्डलिया)

जबले गा आइस हवे, जग मा इंटरनेट। जग हा समटागें हवे, करले सबसे चेट।। करले सबसे चेट, कहा दुरिहा अब हावय। करके मेल मिलाप, ठसन ले गोठीयावय।। पूछय जम्मो हाल, भेंट ला करके सबले। बाँध...

*शिव भोला*(हेम के कुण्डलिया)

सुनले शिव भोला बने, करत हवव गोहार। तोर शरण मा आय हव, करदे नइया पार।। करदे नइया पार, रहे ना मन अभिलासी। जग के तारन हार, तही घट घट के वासी।। कहत हेम कविराय, मैल ला मेटव मनले। कण्ठ बि...

हेम के कुण्डलिया

सुनले बैसाखू कका, बिगड़े घर तन खेत। बरबाद करँय ये नशा, बने लगा ले चेत। बने लगा ले चेत,  रोग लावय गा भारी। रहय न घर अउ घाट, संग रहिथे लाचारी। कहत हेम कविराय, बने तँय एला गुनले। नशा क...