1) हे जग महमाई, सबके दाई, मन मे आके, वास करौ। हे मंगल करनी, जग के जननी, विपदा आके, मोर हरौ। महिमा हे भारी, शोभा न्यारी, सबझन तोरे, गान करै। करथे मन सेवा, चढ़ा कलेवा, सब भक्तन मन, ध्या...
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।