1) हे जग महमाई, सबके दाई, मन मे आके, वास करौ। हे मंगल करनी, जग के जननी, विपदा आके, मोर हरौ। महिमा हे भारी, शोभा न्यारी, सबझन तोरे, गान करै। करथे मन सेवा, चढ़ा कलेवा, सब भक्तन मन, ध्यान धरै। 2) बढ़िया मन राखत, मया जगावत, तँय सँगवारी, मोर रहे। धरती महतारी, मोर चिन्हारी, मन हा दाई, रोज कहे। मन हा बिसरावत, सुरता आवत, तोला दाई, ध्यान धरे। महिमा ला गावत, मन मुस्कावत, मन हा मोरे, गान करे। 3) सेवा कर भाई, ददा ग दाई, तीरथ गंगा, धाम हरे। जप करले ओकर, झन खा ठोकर, नइया तोरे, पार करे। तँय छोड़ दिखावा, छैल छलावा, जग के माया, आँख परे। तँय धरम कमाले, दया दिखाले, जग मा सुघ्घर, दान धरे। 4) का हवै ठिकाना, सबला जाना, देखव यम हा, प्रान धरे। खाली तँय आबे, खाली जाबे, जिनगी के दिन, चार हरे। माटी के काया, जग के माया, रिश्ता नाता, छोड़ चले। तँय धरम कमाले, दान दिखाले, तोर जगत मा, नाम फले। 5) हे बरखा रानी, बचा किसानी, सुख्खा खेती, देख परे। खाली हे नदिया, देखव तरिया, सुरता सब झन, तोर करे। पाना मुरझावत, पेड़ सुखावत, जोहत रहिथे, आस धरे। ए जिनगानी मा, बिन पानी मा, अब यम आके, प्रान हरेे।
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।