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*(छन्द त्रिभंगी)*

1) हे जग महमाई, सबके दाई,   मन मे आके,  वास करौ। हे मंगल करनी, जग के जननी, विपदा आके, मोर हरौ। महिमा हे भारी,   शोभा न्यारी, सबझन तोरे, गान करै। करथे मन सेवा, चढ़ा कलेवा, सब भक्तन मन, ध्यान धरै। 2) बढ़िया मन राखत, मया जगावत, तँय सँगवारी, मोर रहे। धरती महतारी, मोर चिन्हारी, मन हा दाई, रोज कहे। मन हा बिसरावत, सुरता आवत, तोला दाई, ध्यान धरे। महिमा ला गावत, मन मुस्कावत, मन हा मोरे, गान करे। 3) सेवा कर भाई, ददा ग दाई, तीरथ गंगा, धाम हरे। जप करले ओकर, झन खा ठोकर, नइया तोरे, पार करे। तँय छोड़ दिखावा, छैल छलावा, जग के माया, आँख परे। तँय धरम कमाले, दया दिखाले, जग मा सुघ्घर, दान धरे। 4) का हवै ठिकाना, सबला जाना, देखव यम हा, प्रान धरे। खाली तँय आबे, खाली जाबे, जिनगी के दिन, चार हरे। माटी के काया, जग के माया, रिश्ता नाता, छोड़ चले। तँय धरम कमाले, दान दिखाले, तोर जगत मा, नाम फले। 5) हे बरखा रानी, बचा किसानी, सुख्खा खेती, देख परे। खाली हे नदिया, देखव तरिया, सुरता सब झन, तोर करे। पाना मुरझावत, पेड़ सुखावत, जोहत रहिथे, आस धरे। ए जिनगानी मा, बिन पानी मा, अब यम आके, प्रान हरेे।

सरसी छन्द फागुन

देख महीना आगय फागुन, घर मा हे अँधियार। दूखन भूखन रहिके आसो, मानत हवन तिहार।। तरिया नदिया सुक्खा हावे, सुक्खा खेती खार। बिन पानी के मचगेे हावय, भारी हाहाकार।। आसो के होरी मा परगे, हावय देख दुकाल। दाना पानी बर तरसत हे, जी लागे जंजाल।। मनखे मन ला देखव संगी, बिन पानी मुरझाय। चिरई चुरगुन मन रोवत हे, राम राम चिल्लाय।। लाल लाल जी परसा फुलगे, आमा हा मउराय। मनके पीरा बाढ़त हावय, फागुन हा लकठाय।। बबा सुनाके किस्सा ला जी, ढाढस बाँधत जाय। आही सुख के दिन हा बेटा, कहिके ओ समझाय।। आँव मनाबो सुघ्घर होरी, नवा नवा हे साल। सुनही हमरो विनती रामा, खेलबो रंग गुलाल।। -हेमलाल साहू

सरसी छन्द नारी

मान राख जग मा नारी के , झन कर अपमान। नर नारी ले जग हा बनथे, होवय जग कल्यान।। दुरगा काली लछमी दाई, बनके बाँटत ज्ञान। देवी रूप हरे जी नारी , जग बर गा वरदान।। फेर आज के ये समाज मा, सब नारी बेहाल। भोग विलासा वस्तु जानके, नोचत हावय बाल।। बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी मन, बैठे हवय हजार। आँखी मा अन्याय देख के, काबर हे लाचार।। नारी ताकत ला झन भूलौ,  रखलव भैया याद। धरै भेष ला चंडी के जग ला, कर देथे बरबाद।। मूक सझम के नारी ऊपर, झन कर अत्याचार। झन बनाव नारी ला चंडी, जग ला रखव सँवार।। -हेमलाल साहू