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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*(छन्द त्रिभंगी)*

1) हे जग महमाई, सबके दाई,   मन मे आके,  वास करौ। हे मंगल करनी, जग के जननी, विपदा आके, मोर हरौ। महिमा हे भारी,   शोभा न्यारी, सबझन तोरे, गान करै। करथे मन सेवा, चढ़ा कलेवा, सब भक्तन मन, ध्या...

सरसी छन्द फागुन

देख महीना आगय फागुन, घर मा हे अँधियार। दूखन भूखन रहिके आसो, मानत हवन तिहार।। तरिया नदिया सुक्खा हावे, सुक्खा खेती खार। बिन पानी के मचगेे हावय, भारी हाहाकार।। आसो के होरी मा प...

सरसी छन्द नारी

मान राख जग मा नारी के , झन कर अपमान। नर नारी ले जग हा बनथे, होवय जग कल्यान।। दुरगा काली लछमी दाई, बनके बाँटत ज्ञान। देवी रूप हरे जी नारी , जग बर गा वरदान।। फेर आज के ये समाज मा, सब ना...