1) मनखे मन काँटिच हे बन ला, टँगिया हँसिया धरके हर साल। निमगा पुरवा नइ पावच गा, बनगे जिनगी बर ओहर काल। तरिया नदिया डबरा पटगे, पनिया बिन रोवत हे सब ताल। बढ़िया रुखवा ल लगा बन मा, जिनग...
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।