मान राख जग मा नारी के , झन कर अपमान।
नर नारी ले जग हा बनथे, होवय जग कल्यान।।
दुरगा काली लछमी दाई, बनके बाँटत ज्ञान।
देवी रूप हरे जी नारी , जग बर गा वरदान।।
फेर आज के ये समाज मा, सब नारी बेहाल।
भोग विलासा वस्तु जानके, नोचत हावय बाल।।
बड़े बड़े ज्ञानी ध्यानी मन, बैठे हवय हजार।
आँखी मा अन्याय देख के, काबर हे लाचार।।
नारी ताकत ला झन भूलौ, रखलव भैया याद।
धरै भेष ला चंडी के जग ला, कर देथे बरबाद।।
मूक सझम के नारी ऊपर, झन कर अत्याचार।
झन बनाव नारी ला चंडी, जग ला रखव सँवार।।
-हेमलाल साहू
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