हेम के कुकुम्भ छंद जय छत्तीसगढ़ मोर माटी, जग बर हावच वरदानी। सबले बढ़िया तोला कहिथे, तोरो हे गजब कहानी।। सब दुख पीरा तही हरैया, तोला सब माथ लगाथे। तोर शरण मा रहिके दाई, सुघ्घर जिनगी ल पहाथे।। तोर हवे ये भुइँया पावन, बसे देवता अउ धामी। गाँव गाँव माहामाया अउ, बसे राम अन्तर्यामी।। घर घर रामायण बाचत हे, बहे ज्ञान गंगा गीता। पावन हवे इहाँ के नारी, पूजे जस लक्ष्मी सीता।। बगरे हावय खनिज सम्पदा, देख इहाँ कोना कोना। हीरा मोती के खदान हे, भरे पड़े चाँदी अउ सोना।। कतको हावय बड़का बड़का, देखव इहाँ कारखाना। काम करे बाहर ले आवय, इहाँ बनावय ग ठिकाना।। देख कला संस्कृति ला सँजोय, पावन हवे तोर माटी। तोरच कोरा मा लइका मन, खेलय भँवरा अउ बाँटी।। रंग बिरंगी चिरई चिरगुन, जिनकर गुरतुर हे बोली। आनी बानी के जीव जन्तु, पाबे तँय टोली टोली।। नाचा गम्मत लोगन मनके, देख खूब मन ला भावे। सुवा ददरिया करमा पंथी, राग भरथरी जब गावे।। मातर मड़ई मेला बर जी, गाँव गाँव राउत जागे। नाच नाच के पारे दोहा, कतका सबला निक लागे।। धान चना गेहूँ उपजाथस, अउ उपजाथस उँनहारी। जय छत्तीसगढ़ मोर माटी, महिमा हवे तोर भारी।। सबले बढ़िया तोला कहिथे, ...