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नवंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*कज्जल छन्द*

पावन छत्तीसगढ़ मोर। मया दया ला रखे जोर। हवे किसानी के सोर। संग मितानी रहे तोर। देव विराजे इहाँ जान। साधु संत के हवे मान। भुइँया के हावे किसान। कहिथे जेला ग भगवान। बइला जेकर...

*कुकुभ छन्द*

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा, बड़ गुरतुर मोला लागे। जन्म जन्म के रिश्ता हावे, जेला मोरे मन भागे। मोर हवय जे दाई भाखा, मानव जेला भगवाने। मीठ मीठ अउ गुरतुर बोली, बोलव जी सीना ताने। नाचत ...

*मोद सवैया* (छन्द)

1) बालक छोट रहे हम खेलन कूदन जी धुर्रा अउ माटी। जावन होत बिहान धरे थइली भर जी भौंरा अउ बाँटी। नाचत कूदत खूब मजा लन जी पहिरे माला गर घांटी ।। देवन जी सँगला बढ़िया अउ जावन गा संगी ब...