माया के दुनिया हरै, बनबे झने अलाल।। मँय मँय ला छोड़ के, आदत सुघ्घर डाल। आदत सुघ्घर डाल, मेहनत के बन साथी। दान दया ला राख, जगत के बन परमार्थी।। कहै हेम कविराय, हवय माटी के काया। छो...
जनम जनम के बंधना, मया प्रीत के छाँव। भुइँया के बेटा हरव, जेकर महिमा गाव।। मोर छत्तीसगढ़ी रचना कोठी।