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मार्च, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हेम के कुण्डलिया

माया के दुनिया हरै, बनबे झने अलाल।। मँय मँय ला छोड़ के, आदत सुघ्घर डाल। आदत सुघ्घर डाल, मेहनत के बन साथी। दान दया ला राख, जगत के बन परमार्थी।। कहै हेम कविराय, हवय माटी के काया। छो...

जूनी मेला (सार छन्द)

सँजे-धजे  हे बइला गाड़ी, जावत हावय मेला। गाँव गाँव के लोग लुगाई, जावत रेलम पेला।। रखै आस दरशन के मनमा, गावत जावय गाना। जियत मरत के मेला हावय, नइ हे फेर ठिकाना।। अरे तता कहिके हा...

सुन ले मोरे मितवा (सार छंद)

सुन साथी रे सुन संगी रे, सुन ले मोरे मितवा। आ जाबे रे आ जाबे रे, मोर जनम के हितवा।। जग हा सुन्ना मोला लागे, सुरता दिन भर आवै। तोर बिना जग बइरी होंगे, अबतो मन नइ भावै।। बोझ लगै जिनग...

हेम के कुण्डलिया

सजथे सुघ्घर गाँव मा, देखव हाट बाजार। आनी बानी साग हे, लेवव छाँट निमार।। लेवव छाँट निमार, रहय झन एको कड़हा। ताजा ताजा ताय, तराजू मा ले मड़हा।। कहत हेम कविराय, हाट गाँवे मा लगथे। घ...

हेम के कुण्डलियाँ

दारू ला अब बेचही, देखव जी सरकार। पइसा खातिर आज ये, करत हवै बेपार।। करत हवै बेपार, मारही अब मनखे ला । दारू भट्टी खोल,   लगाही मेला ठेला ।। पीके कतको रोज, मरँय झँगलू बुधवारू। हद ह...

नारी

नारी दव जग आन जी, झन कर अत्याचार। नर नारी से जग चलै, इहि मा जिनगी सार।। इहि मा जिनगी सार, मान नारी के राखव। नारी जग पहचान, जेन ला अबतो जानव।। कहत हेम कविराय, हवै महिमा हा भारी। दे...

होरी के संग जोही के सुरता

देख महीना फागुन आगे, मन नइ भावे मोर। चढ़ै नशा फागुन के हावे, रंग मया के तोर।। रोज रोज के सपना आथे, दिल मा उठै हिलोर। रहिथे मोरे मन उदास गा,  सुरता आथे तोर।। बइठे रद्दा जोहत हव मँय, ...

आगे फागुन (सरसी छंद)

आगे हावय फागुन महिना, रंग उड़त हे लाल। मया प्रीत के रंग रंगथे, सबो लगावत गाल।। ढोल नगाड़ा हवै बजावत, फागुन के हे राग। खेलत कूदत नाचत सुघ्घर, गावत हावे फाग।। चढ़ै नशा फागुन के हाव...

सुरता कोदूराम दलित जी के

पुरखा मन के सुरता करके, मन भर के कर याद। जेमन  हमर  धरोहर बर जी, डारिस पानी खाद।। खादी  कुरता  धोती  टोपी,  रहिस हवै पहिचान। जन जन के ओहर सँगवारी, बड़का प्रतिभावान।। जिला दुरुग...