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शबरी दाई ( हेम के आल्हा छंद)


शिष्या शबरी ऋषि मतंग के, बसथे जेकर हिरदय राम।
राम राम निस ओ जाप करै, परहित सेवा जेकर काम।।

सुनके बलि प्रथा जीव मन के, छोड़िस अपन ददा के साथ।
भाग अपन घर ले आइस बन, ऋषि सेवा म लगाइस हाथ।।

तन मन ले सेवा कर सुघ्घर, पाइस शबरी हर वरदान।
बात बताइस ऋषि मतंग हा, आही तोरे घर भगवान।।

आनी बानी फूल लान के, सब्बो रस्ता रोज  बिछाय।
चीख चीख के बोइर मीठा, छाँट छाँट धर घर मा लाय।।

राम भक्ति मा डूबे शबरी, रद्दा प्रभु के जोहत जाय।
सुरता राखे गुरु के अपने, दीया मन के ओह जलाय।।

गरमी सरदी बारो महिना, मुख मा ओकर राम कहाय।
परम् तेजस्वी शबरी दाई, कभू निरासा नइ हो पाय।।

आइस राम एकदिन घर मा, शबरी के मन बड़ हरसाय।
देख राम ला कुटिया मा ओ, पाँव पखारे माथ लगाय।।

जूठा बोइर अपन हाथ ले, खुशी खुशी मा ओह खवाय।
पाइस परभू राम प्रसादा, दुनिया मा ओ अमर कहाय।।

नवधा भक्ति जेन हा करथे, बैकुंठ लोक ओहर पाय।
जियत मरत के बंधन छूटे, हिरदय ओकर राम समाय।।

-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम-गिधवा, जिला बेमेतरा (छ.ग.)

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