माटी बन माटी मिलै, सुघ्घर लै आकार।
माटी ला पूजे सबे, जिनगी बर इहि सार।।
माटी के बेटा हमन, करथन सबसे प्रेम।
राज भगा ले दोगला, आही हमरे टेम।।
सागर साहित साधना, जस उतरे तस डूब।
मिलथे कहाँ अथाह जी, पानी दिखथे खूब।।
मन के ईष्या फेक के, मया सबो से राख।
मानव मानव एक हन, राख बचाके साख।।
जिनगी के दिन चार हे, गाँठ बाँध ले हेम।
काल हवे सबसे बड़े, राख मया अउ प्रेम।।
जस रगड़े तँय रत्न ला, चमके ओकर रंग।
लेवन रहिके ज्ञान ला, जिनगी भर गुरु संग।।
कठिन हवे साधना, साहित के बड़ जान।
बिना मेहनत ना मिलै, भैया कउनो ज्ञान।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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