सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया, इही तोर पहचान।
खेत खार के सेवा करथस, कहिथे जगत किसान।।
माटी के पूजा ला करथस, माटी करत बखान।
भुइँया हे भगवान तोर गा, बइला हवय मितान।।
सीधा साधा भोला भाला, सादा हवय लिवाज।
धरती के सेवा ल बजावत, करथस रोजे काज।।
किसम किसम के चिरई चुरगुन, रुख राई अउ झाड़।
लागय अड़बड़ हमला निक गा, बड़का छोट पहाड़।।
सुघ्घर नदिया नरवा हावे, बहिथे निरमल धार।
पानी मा मिठास बड़ हावय, पी ले बारम्बार।।
भरे अन्न के भंडार हवे, जग ला करथे दान।
मया दया के भुइँया हावे, बसे इहाँ भगवान।।
छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोली, सुघ्घर लागय गोठ।
बड़ सुघ्घर हे मोरो भाखा, हावय सबले पोठ।।
जियत मरत ले गुण ला गाथे, माटी करत प्रणाम।
सबले बढ़िया छत्तीसगढ़िया, जपे जिहाँ प्रभु राम।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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