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जागव रे (सरसी छंद)

जागव रे जवान जागव रे, संगी मोर सियान।
धरती गोहार लगावत हे, देवव अबतो ध्यान।।

झन काँटव जंगल झाड़ी ला, धरती के श्रृंगार।
सबो जीव के हवय बसेरा, जिनगी के आधार।।

जैसे काँटत जाबे जंगल, कतको बनही घाँव।
बंजर हो जाही भुइँया हर, उजड़त जाही गाँव।।

सूखा जाही पानी सब्बो, मर जाबे तँय प्यास।
बिना हवा पानी जिनगी के, तोर छूट जहि साँस।।

तीप जही भुइँया लकलक ले, चट-चट जरही पाँव।
लेसा जाही तन तोर घाम मा, मिले नहीं जुड़ छाँव।।

रुख राई ले पवन बहे गा, जिनगी के बन प्रान।
पैसा खातिर झन बेचव गा, भविष्य अउ ईमान।।

जंगल हसदेव ला बचाके, करलव गरब गुमान।
हमर आदिवासी संस्कृति के, जेन हवय पहचान।।

समे रहत ले चेत लगाके, जंगल अपन बचाव।
सुखी रही जिनगानी सबके, सुघ्घर पेड़ लगाव।।

- हेमलाल साहू
छन्द साधक, सत्र-1
ग्राम- गिधवा, जिला बेमेतरा

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