आवव मिलके रुख राई ला, जम्मों डहर लगाबों।
निर्मल करबो पुरवा पानी, सुख के अलख जगाबों1।
पानी बर झन तरसे धरती, अइसन दिन ला लाबो।
किसम किसम के रुख राई मा, धरती ला सम्हराबों।2।
पेट भरे बर फल मिलही गा, घर बर लकड़ी झाड़ी।
प्यास जगत के बुझही संगी, सुख ले चलही गाड़ी।3।
झूम झूम के बरखा आही, होही बने किसानी।
लाँघन कोनो नइ रइही गा, रुख सँग बदव मितानी।4।
भरे रहे नदिया नरवा मा, अतल तला तल पानी।
हरियर हरियर धरती सँभरे, हाँसय गा जिनगानी।5।
सबो डहर रुख राई पाबौ, सुघ्घर लगे घनेरा।
चिरई चुरगुन खेलय कूदय, लगा मया के डेरा।6।
रुख राई के रक्षा करबो, तब पाबौ हरियाली।
हाँसत रइही सबके जिनगी, गाँव भरे खुशियाली।7।
गाँव गाँव मा बढ़िया संगी, नव सुराज ला लाबो।
रुख राई जइसे पूत नही, सुघ्घर मान बढ़ाबों।8।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा (छ.ग.)
टिप्पणियाँ