होत बिहनिया उठके भैया, धरती करत बखाने।
सुरुज देव के पाँव परत हे, अंजोर नवा लाने।।
देखत हावे करिया बादर, हाँसत हे जिनगानी।
मनमे आस जगावत हावे, होही बने किसानी।।
सान कोटना सुघ्घर आँटी, बइला खूब खवाये।
जिनगी ला मोर तार के तँय, घर मा लछ्मी लाये।।
बार बार वो पाँव परत हे, कसके मया दुलारे।
करबो चलना संगी खेती, आगे बारिस हा रे।।
होत बिहनिया निकले भैया, खाँदे बोहे नागर।
धरे तुतारी हाथे अपने, धरके जावय जाँगर।।
फाँदे बइला नागर भैया, खेत बोय जी धाने।
अरा तता के धुन हर गूँजे, देख जगत हा जाने।।
दुख पीरा ला सहत रहे जी, दूनो देख मिताने।
का कहिबो ए घाम छाँव ला, बइला जाँगर माने
बिना करम फल मिले नहीं, करव गान भगवाने।
जाँगर पेरत हवे रात दिन, करके सेवा ध्याने।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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