झन काँटव गा रुख राई ला, जेमा हे जिनगानी।
हावय सबके डेरा संगी, करहूँ झन मनमानी।।
सुघ्घर रुख राई मन हावे, देखव ठउर ठिकाना।
सबो जीव जंगल रहिथे, तँय झन खोज बहाना।।
अपने स्वारथ बर जी सबके, हवे उजारत डेरा।
चिरई चुरगुन रोवत हावय, करबो कहाँ बसेरा।।
दीया बूता गे जिनगी के, जले कहाँ ले बाती।
सब रुख राई कटगे संगी, जरथे भुइँया छाती।।
मिले नहीं निरमल पुरवाई, अटकत हावे साँसी।
बून्द बून्द पानी बर तरसे, जिनगी होगय फाँसी।।
सोचब समझव आवव संगी, लगाबोन रुख राई।
बाग बगइचा खूब बनावँन, निरमल हो पुरवाई।।
सुघ्घर धरती आँव सम्भरा, पहिरा हरियर लुगरा।
मान प्रकृति के रखबो संगी, नई करन जी उँघरा।।
जंगल झाड़ी रुख राई मा, सुघ्घर हमर निसानी।
चिरई चुरगुन सबो जीव के, हावय दबे कहानी।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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