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सरसी छंद *दाई*

सजगे दाई तोर दुवरिया, गूँजत हे जयकार।
लाली लुगरा पहिरे दाई, किसम किसम के हार।।

आगे हावय नव दिन के ये, सुघ्घर ओ नवरात।
रिगबिग रिगबिग दीया बरथे, महिमा तोरे गात।।

नव दिन ले रखथे जी सुघ्घर, दाई के उपवास।
तन मन अर्पित करके लोगन, रहिथे दाई पास।।

पान सुपारी नारियल चढ़ा, पूजा करथे तोर।
मन के मनोति ला ओ माँगय, हाथ ल दूनो जोर।।

मादर डोलक झांझ मँजीरा, सुघ्घर हवय बजात।
लगे हवय सेवा मा सेउक, तोर भजन ला गात।।

काली दुर्गा लक्ष्मी देवी, सबला जानव एक।।
दाई बहनी दीदी बेटी, हावय रूप अनेक।।

महिमा गावत हावव दाई, कर दे जग उद्धार।
नइया पार लगा दे सबके, तहि जग तारन हार।।

जियत मरत ले तोर संग हे, जग मा नाता मोर।
पर सेवा पर उपकार करव, ले के नावे तोर।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा

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