सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लुवई मिसई (हेम के दोहे)

कार्तिक अघ्घन पूस मा, लुवई मिसई आय।

मिले नहीं आराम हा, कसके रोज कमाय।।


धरके जावय हंसिया, खेत लुये ला धान।

पाही पाही धर लुये, करपा माढ़य घान।।


पूरा लाने धान के, डोरी गजब बनाय।

करपा लान सकेल के, बोझा बाँध बनाय।।


बइला गाड़ी धान भर, बोझा बोझा जोर।

मेड़ पार ला खेत के, लावन रावन फोर।।


गाड़ी ला कोठार मा, लान खड़ा कर तीर।

सुघ्घर खरही गाँज ले, मढ़ा मढ़ा के धीर।।


छोल चाच चतवार के, सुघ्घर हवे बनाय।

खवरावय कोठार झन, गोबर लेप चटाय।।


गोबर पानी डार के, लिप ले तँय कोठार।

झेल कलारी हाथ मा, पैर धान के डार।।


बेलन अउ दवरी चले, बइला ला खेदार।

बीच बीच मा कोड़ के, बने धान ला झार।।


पैरा सबो निकाल के, गोल गोल के गाँज।

पैरावट सुघ्घर दिखे, रखले भइया साज।।


जम्मो धान सकेल के, एक जगा मा लान।

पँखा लगा के तँय उड़ा, बाचय दाना धान।।


बोरा भरके धान ला, घर के कोठी डार।

लक्ष्मी के पूजा करें, घर भर दे भण्डार।।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा (छ. ग.)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

संत गुरु घासीदास (हेम के दोहे)

बाबा घासीदास गा, तोर आय हव द्वार। तँय हर दीया ज्ञान के, मोरो मन मा बार।। निचट अज्ञानी मँय हवव, बता ज्ञान के सार। बाबा अड़हा जान हव, जग ले मोला तार।। दुनिया मा हावे भरै, माया के भण्डार। आके मोरो तँय लगा, बाबा बेड़ा पार।। सबो जीव बाबा हवै, जग मा तोर मितान। सत्य बचन बाबा हवै, तोर जगत पहिचान।। मानव मानव एक हे, जगत तोर संदेश। भेद भाव मनके मिटै, आपस के सब क्लेश। सादा जिनगी तोर हे, सादा हवै लिवाज। सत रद्दा जिनगी चलै, रखै सत्य के लाज।। बाबा तँय सतनाम के, सुघ्घर पन्त चलाय। सत के झंडा देख ले, बाबा जग फहराय।। सत के पूजा ला करै, बाबा घासीदास। सत के रद्दा मा चलै, रहिके सत के पास।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, पोस्ट बेमेतरा तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

पंथी अउ देवदास बंजारे( हेम के दोहे)

ढोलक तबला थाप मा, बाजय मांदर संग। नाचय साधक साधके, देखव पन्थी रंग।। बाबा घासी दास के, करथे सुघ्घर गान। गावय महिमा देखले, गुरु के करत बखान।। चोला पहिर सफेद गा, नाचय पंथी नाँच। बाँधे घुँघरू गोड़ मा, गोठ करै गा साँच।। सादा हवय लिवाज हा, सादा झण्डा जान। सबला देवत सीख हे, मानव एक समान।। देव दास सिरजन करे, पन्थी नाँच बिधान। बगराइस सब देश मा, करके गुरु के गान। -हेमलाल साहू छन्द साधक सत्र-01 ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

जागव रे (सरसी छंद)

जागव रे जवान जागव रे, संगी मोर सियान। धरती गोहार लगावत हे, देवव अबतो ध्यान।। झन काँटव जंगल झाड़ी ला, धरती के श्रृंगार। सबो जीव के हवय बसेरा, जिनगी के आधार।। जैसे काँटत जाबे जंगल, कतको बनही घाँव। बंजर हो जाही भुइँया हर, उजड़त जाही गाँव।। सूखा जाही पानी सब्बो, मर जाबे तँय प्यास। बिना हवा पानी जिनगी के, तोर छूट जहि साँस।। तीप जही भुइँया लकलक ले, चट-चट जरही पाँव। लेसा जाही तन तोर घाम मा, मिले नहीं जुड़ छाँव।। रुख राई ले पवन बहे गा, जिनगी के बन प्रान। पैसा खातिर झन बेचव गा, भविष्य अउ ईमान।। जंगल हसदेव ला बचाके, करलव गरब गुमान। हमर आदिवासी संस्कृति के, जेन हवय पहचान।। समे रहत ले चेत लगाके, जंगल अपन बचाव। सुखी रही जिनगानी सबके, सुघ्घर पेड़ लगाव।। - हेमलाल साहू छन्द साधक, सत्र-1 ग्राम- गिधवा, जिला बेमेतरा