जागव रे जवान जागव रे, संगी मोर सियान। धरती गोहार लगावत हे, देवव अबतो ध्यान।। झन काँटव जंगल झाड़ी ला, धरती के श्रृंगार। सबो जीव के हवय बसेरा, जिनगी के आधार।। जैसे काँटत जाबे जंगल, कतको बनही घाँव। बंजर हो जाही भुइँया हर, उजड़त जाही गाँव।। सूखा जाही पानी सब्बो, मर जाबे तँय प्यास। बिना हवा पानी जिनगी के, तोर छूट जहि साँस।। तीप जही भुइँया लकलक ले, चट-चट जरही पाँव। लेसा जाही तन तोर घाम मा, मिले नहीं जुड़ छाँव।। रुख राई ले पवन बहे गा, जिनगी के बन प्रान। पैसा खातिर झन बेचव गा, भविष्य अउ ईमान।। जंगल हसदेव ला बचाके, करलव गरब गुमान। हमर आदिवासी संस्कृति के, जेन हवय पहचान।। समे रहत ले चेत लगाके, जंगल अपन बचाव। सुखी रही जिनगानी सबके, सुघ्घर पेड़ लगाव।। - हेमलाल साहू छन्द साधक, सत्र-1 ग्राम- गिधवा, जिला बेमेतरा
प्रभु श्री राम दुलारे, जय हनुमान। महाबली जग के, तँय भगवान।। तन मन अपन बसाये, प्रभु श्री राम। आठो पहर राम के, जपथस नाम।। बल बुद्धि शक्ति सबला, देय अपार। नर नारी तोर लगावै, सब जयकार।। नाम लेत सब विपदा, हर टल जाय। कन्द मूल फल तोला, हे मन भाय।। सुमिरत तोर नाम ला, काँपे भूत। अपन संग धर लाये, यम के दूत।। दुश्मन भाग बचाये, अपन परान। जय होवै महावीर, जय हनुमान।। -हेमलाल साहू छंद साधक सत्र-1 ग्राम-गिधवा, जिला बेमेतरा