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हेम के सरसी छन्द (बसन्त ऋतु)

आगे हे राजा बसंत ऋतु, सबके मन ला भाय।
रंग बिरंगी जग मा सुघ्घर, छटा प्रकृति के छाय।।

झुमके काँदी करथे स्वागत, फूल देख मुस्काय।
चिरई चिरगुन घूम घूम के, संदेशा बगराय।।

गोंदा चम्पा अउ चंदैनी, बगिया ला महकाय।
मस्त मगन भौरा नाचे, देख खूब इतराय।।

सरर सरर चलथे पुरवइया, बहिथे चारो ओर।
तरिया अउ नदिया के पानी, मारे देख हिलोर।।

धीरे धीरे आमा मउरे, कोयल गावय गीत।
लाली लाली परसा फूले, जागे सबके प्रीत।।

पीयर पीयर सरसो फूले, छाये मन उल्लास।
रुख राई के हरियर पाना, लाये नव उज्जास।।

- हेमलाल साहू
छन्द साधक, सत्र-1
ग्राम- गिधवा, जिला बेमेतरा

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संत गुरु घासीदास (हेम के दोहे)

बाबा घासीदास गा, तोर आय हव द्वार। तँय हर दीया ज्ञान के, मोरो मन मा बार।। निचट अज्ञानी मँय हवव, बता ज्ञान के सार। बाबा अड़हा जान हव, जग ले मोला तार।। दुनिया मा हावे भरै, माया के भण्डार। आके मोरो तँय लगा, बाबा बेड़ा पार।। सबो जीव बाबा हवै, जग मा तोर मितान। सत्य बचन बाबा हवै, तोर जगत पहिचान।। मानव मानव एक हे, जगत तोर संदेश। भेद भाव मनके मिटै, आपस के सब क्लेश। सादा जिनगी तोर हे, सादा हवै लिवाज। सत रद्दा जिनगी चलै, रखै सत्य के लाज।। बाबा तँय सतनाम के, सुघ्घर पन्त चलाय। सत के झंडा देख ले, बाबा जग फहराय।। सत के पूजा ला करै, बाबा घासीदास। सत के रद्दा मा चलै, रहिके सत के पास।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, पोस्ट बेमेतरा तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

जुबान (कुंडलिया छंद)

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