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जुबान (कुंडलिया छंद)

निकले वापस फेर ना, आवय तोर जुबान। जइसे निकले तीर ले, आवय नहीं कमान।। आवय नहीं कमान, बात ला छेड़व गुनके। शारद दे आशीष, शब्द ला रखलव चुनके।। कहे हेम कविराय, बोल तँय गुरतुर मन ले। सब कड़वाहट फेक, फेर ना वापस निकले।। - हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

याद रखें बर हावय

कभू दुबारा नई मिले गा,  ये दाई ददा जवानी। इकर मान ला रखले बढ़िया,  झन बनबे तँय अभिमानी।। करे नाम ला बदनामी ये, लालच गुस्सा अउ चोरी। करँव कभू झन कोनो ककरो, चारी चुगली मुँहजोरी।। बइरी जर जमीन के कारन, होथे भाई ले भाई। रहव सबो मिलके आपस मा, होवव झन कभू लड़ाई।। सबला प्यारा होथे सबले, बाई धन दौलत दाई।। सोच समझ के रद्दा चुनहूँ, कतको हे आगू खाई।। असली सुख के रोड़ा हावय,  कोट कचहरी के द्वारी। जिनगी मा मत हो कोनो ला, तन मन के कुछु बीमारी।। चुरा नई ले जावय कोनो, अक्कल कला सदाचारी। बने तोर दुख के कारन ये, जलन आलसी लाचारी।। याद रखें बर हावय सबला, जनम मरन के सच्चाई। तोर मान ला सदा बढ़ाही, धरम करम अउ अच्छाई।। -हेमलाल साहू ग्राम-गिधवा, जिला-बेमेतरा