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राखी तिहार ( हेम के सार छंद)

भाई अउ बहनी के सुघ्घर, दया मया ला लावय।
सजे हवै दुकान मा राखी, राखी तिहार आवय।।

मोर गोड़ हा खजुवावत हे, समझे संगी भोला।
मोर करत हे बहिनी सुरता, अइसे लगथे मोला।।

बार बार आके कँउवा मन, सगा सन्देशा लावय।
हरियर हरियर होवय मन हा, मोरो सुध बिसरावय।।

राखी ल निहारत बाबा मन, बहिनी अपन अगोरय।
बार बार रस्ता ला देखत, हाथे राखी जोहय।।

गावत रहय चिरइया चिरगुन, गुरतुर बोली बोले।
तोर हवे बहिनी हा रद्दा मा, रहिबे द्वारे खोले।।

बारो महिना रद्दा जोहय, बँद होवत हे आँखी।
भाई आये हे तोरे घर, बाँध मया के राखी।।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ. ग.)


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संत गुरु घासीदास (हेम के दोहे)

बाबा घासीदास गा, तोर आय हव द्वार। तँय हर दीया ज्ञान के, मोरो मन मा बार।। निचट अज्ञानी मँय हवव, बता ज्ञान के सार। बाबा अड़हा जान हव, जग ले मोला तार।। दुनिया मा हावे भरै, माया के भण्डार। आके मोरो तँय लगा, बाबा बेड़ा पार।। सबो जीव बाबा हवै, जग मा तोर मितान। सत्य बचन बाबा हवै, तोर जगत पहिचान।। मानव मानव एक हे, जगत तोर संदेश। भेद भाव मनके मिटै, आपस के सब क्लेश। सादा जिनगी तोर हे, सादा हवै लिवाज। सत रद्दा जिनगी चलै, रखै सत्य के लाज।। बाबा तँय सतनाम के, सुघ्घर पन्त चलाय। सत के झंडा देख ले, बाबा जग फहराय।। सत के पूजा ला करै, बाबा घासीदास। सत के रद्दा मा चलै, रहिके सत के पास।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, पोस्ट बेमेतरा तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

जुबान (कुंडलिया छंद)

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