भाई अउ बहनी के सुघ्घर, दया मया ला लावय।
सजे हवै दुकान मा राखी, राखी तिहार आवय।।
मोर गोड़ हा खजुवावत हे, समझे संगी भोला।
मोर करत हे बहिनी सुरता, अइसे लगथे मोला।।
बार बार आके कँउवा मन, सगा सन्देशा लावय।
हरियर हरियर होवय मन हा, मोरो सुध बिसरावय।।
राखी ल निहारत बाबा मन, बहिनी अपन अगोरय।
बार बार रस्ता ला देखत, हाथे राखी जोहय।।
गावत रहय चिरइया चिरगुन, गुरतुर बोली बोले।
तोर हवे बहिनी हा रद्दा मा, रहिबे द्वारे खोले।।
बारो महिना रद्दा जोहय, बँद होवत हे आँखी।
भाई आये हे तोरे घर, बाँध मया के राखी।।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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