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*मोद सवैया* (छन्द)

1)
बालक छोट रहे हम खेलन कूदन जी धुर्रा अउ माटी।
जावन होत बिहान धरे थइली भर जी भौंरा अउ बाँटी।
नाचत कूदत खूब मजा लन जी पहिरे माला गर घांटी ।।
देवन जी सँगला बढ़िया अउ जावन गा संगी बन खाँटी।
2)
खेलन जी मिलके कतको ठन खेल ल गा पारी  दर पारी।
रेलम रेस ल खेलन दाम ल देवन जी संगी सँगवारी।
खेलन खेल ल जेकर हे महिमा जग मा संगी बड़ भारी।।
खोजन ढूढन खोर गली अउ जी सबके कोठा घर बारी।
3)
पाँव परे जयकार लगावय जी भुइँया के मोर किसाने।
राग बने धरके भइया करथे भुइँया के रोज बखाने।
धान लुये बर जात हवै धरके हँसिया ला मोर मिताने।
देखव खोर गली अँगना परगे सब सुन्ना होत बिहाने।
4)
गागर मा भरले तँय सागर ज्ञान ल भैया तोर बढ़ाके।
बाँटव सुघ्घर ज्ञान ल ये जग मा मनके दीया ल जलाके।
रोवत गावत ये दुखहारिन ला बढ़िया जी संग हँसाके।
दान दया धरके रखबे बढ़िया तँय भैया संग जगाके।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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