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सरसी छन्द फागुन

देख महीना आगय फागुन, घर मा हे अँधियार।
दूखन भूखन रहिके आसो, मानत हवन तिहार।।

तरिया नदिया सुक्खा हावे, सुक्खा खेती खार।
बिन पानी के मचगेे हावय, भारी हाहाकार।।

आसो के होरी मा परगे, हावय देख दुकाल।
दाना पानी बर तरसत हे, जी लागे जंजाल।।

मनखे मन ला देखव संगी, बिन पानी मुरझाय।
चिरई चुरगुन मन रोवत हे, राम राम चिल्लाय।।

लाल लाल जी परसा फुलगे, आमा हा मउराय।
मनके पीरा बाढ़त हावय, फागुन हा लकठाय।।

बबा सुनाके किस्सा ला जी, ढाढस बाँधत जाय।
आही सुख के दिन हा बेटा, कहिके ओ समझाय।।

आँव मनाबो सुघ्घर होरी, नवा नवा हे साल।
सुनही हमरो विनती रामा, खेलबो रंग गुलाल।।
-हेमलाल साहू

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संत गुरु घासीदास (हेम के दोहे)

बाबा घासीदास गा, तोर आय हव द्वार। तँय हर दीया ज्ञान के, मोरो मन मा बार।। निचट अज्ञानी मँय हवव, बता ज्ञान के सार। बाबा अड़हा जान हव, जग ले मोला तार।। दुनिया मा हावे भरै, माया के भण्डार। आके मोरो तँय लगा, बाबा बेड़ा पार।। सबो जीव बाबा हवै, जग मा तोर मितान। सत्य बचन बाबा हवै, तोर जगत पहिचान।। मानव मानव एक हे, जगत तोर संदेश। भेद भाव मनके मिटै, आपस के सब क्लेश। सादा जिनगी तोर हे, सादा हवै लिवाज। सत रद्दा जिनगी चलै, रखै सत्य के लाज।। बाबा तँय सतनाम के, सुघ्घर पन्त चलाय। सत के झंडा देख ले, बाबा जग फहराय।। सत के पूजा ला करै, बाबा घासीदास। सत के रद्दा मा चलै, रहिके सत के पास।। -हेमलाल साहू ग्राम गिधवा, पोस्ट बेमेतरा तह. नवागढ़, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

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ढोलक तबला थाप मा, बाजय मांदर संग। नाचय साधक साधके, देखव पन्थी रंग।। बाबा घासी दास के, करथे सुघ्घर गान। गावय महिमा देखले, गुरु के करत बखान।। चोला पहिर सफेद गा, नाचय पंथी नाँच। बाँधे घुँघरू गोड़ मा, गोठ करै गा साँच।। सादा हवय लिवाज हा, सादा झण्डा जान। सबला देवत सीख हे, मानव एक समान।। देव दास सिरजन करे, पन्थी नाँच बिधान। बगराइस सब देश मा, करके गुरु के गान। -हेमलाल साहू छन्द साधक सत्र-01 ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ.ग.)

जागव रे (सरसी छंद)

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