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हेम के कुण्डलिया

बसंत पंचमी

विनती करथे देख ले, माँ सेवा मा खोय।
आगय बसंत पंचमी, सारद पूजा होय।।
सारद पूजा होय, ज्ञान बर अरजी करथे।
मनके दीया जला, देख माँ बिद्या भरथे।।
जोड़व मनके तार, पाव जी सबो मनवती।
सबो पाय बर ज्ञान, देख गा करथे विनती।।

गावय कोयल गीत ला,  आमा हा मउराय।
आगे सुघ्घर बसन्त हा,   सेहत ला हे लाय।।
सेहत ला हे लाय,   सबो के मन ला भावय।
बनके खुशियॉ छाय, मोर मन नाचय जावय।।
हाँसत हे कविराय, देख कुदरत ह लुभावय।
सुनव राग बसन्त,   गीत ला कोयल गावय।।

महँगाई
कसके ऊड़त सोर हा, शहर गाँव अउ खोर।
महँगाई के जोर हा, कनिहा ला दिस टोर।।
कनिहा ला दिस टोर, आज गा मरना होंगे।
बयपारी मन खात, आम जन भूखा सोगे।।
कइसे होवय बचत, होय गा खरचा सबके।
बड़े जिनिस के भाव, सोर हा ऊड़त कसके।।

रोजी रोटी पाय बर, होवत हावे टेम।
बेगारी के मार मा, रोवत हावय हेम।।
रोवत हावे हेम, रूपिया पैसा खातिर।
लूटत हावे देख, भगत जी बनके शातिर।
चलै दोगला राज, जॉब ला कइसे खोजी।
दर दर भटकत हवय, पाय बर रोटी रोजी।।

खेड़ा जरी
खावव जी खेड़ा जरी, स्वाद रहै भरमार।
राँध अमटहा संग मा, बनही जी रसदार।।
बनही जी रसदार, सबो झन ला पुर जाही।
खूब मजा ले खाव, गाँव के सुरता आही।।
कहिथे कविवर हेम, साग बढ़िया हे जानव।
सेहत अपन बनाव, जरी खेड़ा जी खावव।।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पो. नगधा,
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
छत्तीसगढ़, मो. 9977831273

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